प्रश्न- वृंदावन क्या है ?
उत्तर- सतत प्रतीक्षा अपलक लोचन ।
जल्दी बुला लो मेरी स्वामिनी ।।
वृन्दावन रसिकन रजधानी ।
जा रजधानी की ठकुरानी, महारानी राधा रानी ।।
वृन्दावन, रसिकन रजधानी ।
जा रजधानी की ठकुरानी, महारानी राधा-रानी ।
जा रजधानी पनिहारिनि बनि, चारिहुँ मुक्ति भरति पानी ।।
हॉं वही वृन्दावन जहाँ नित्य नवीन युगल रस बरसता रहता है l हाँ वही वृन्दावन जहाँ निवास पाने हेतु बड़े बड़े पदाधिकारी और अरबपति सब कुछ त्याग कर कुटी बनाकर रहते हैं । वही वृन्दावन ।
वृन्दावन वह नहीं है जो दिल्ली वाले गाड़ी निकाल कर घूम आते हैं, बिहारी जी के दर्शन कर माथे पर राधा नाम लिखवा कर या गले में प्रसादी माला डालकर सेल्फी लेते हैं, वह तो वृन्दावन बिल्कुल नहीं है। वह वृन्दावन की चाट-कचौड़ी वाली गली वृन्दावन नहीं है, वह तो धोखा है पर्यटकों के लिए।
वृन्दावन दिव्य है, चिन्मय है, यहाँ के कण-कण में रस है, आनंद है, विरह है, प्रेम है, व्रज रसिकों की चरणधूलि से जिसका कण-कण दैदीप्यमान है, वह वृन्दावन है। वृन्दावन तो दिव्य है, कण-कण में दिव्यता मधुरता लिए हुए बड़े-बड़े ऋषीन्द्र-मुनीन्द्र के मन को बलात् हरण कर लेता है और उनकी निर्गुण की समाधि भुला देता है, वह है वृन्दावन ।
वृन्दावन घूमने-फिरने वाला वृन्दावन नहीं है, यह वह वृन्दावन है, जहाँ हृदय प्रेम से फटने लगता है और जब नहीं संभलता तो उसका लावा नेत्रों से स्वतः बहने लगता है ।
वृन्दावन सिर्फ बांके बिहारी का ही मन्दिर नहीं है, बल्कि वृन्दावन वह है जहाँ पग-पग पर व्रजरसिक जन प्रेम की वर्षा और प्रेम दान कर रहे हैं । आओ-आओ लूट लो । ऐसा खज़ाना कभी नहीं और कहीं नहीं मिलेगा। वृन्दावन पर्यटन स्थली नहीं, साधना स्थली है । पागलों की भूमि है । जो भी यहाँ आता है वह पगला जाता है । जो नहीं पगलाता, तो समझ लो कि वह वृन्दावन नहीं, बल्कि एक पर्यटन स्थल पर पहुँच गया है जहाँ प्रस्तर निर्मित अट्टालिकाओं में पत्थर की सुंदर-सुंदर मूर्तियाँ हैं, ठाकुर-ठकुरानी नहीं ।
जो रस बरस रह्यो वृन्दावन, सो रस तीनि लोक मँह नाहिं।
लूट लो लूट लो, बरस रहा है । भीगो इस रस में । भीग कर के तो देखो । छाता फेंको और भीगो इस रस में । निरंतर वर्षा हो रही है प्रेम की, आनंद की, पर तुम तो छाता फेंकोगे नहीं । छाता से बड़ा प्रेम है। आओ-आओ वृन्दावन । इसके जैसा कहीं अन्यत्र धाम नहीं । यहाँ बस प्रेम ही प्रेम है।
युगल रस, वृन्दावन बरसे l
Who is God?
ईश्वर क्या है ?सम्पूर्ण संसार या सृष्टि या ब्रह्माण्ड के एक-एक जीव और जड़ से लेकर चेतन तक को नियंत्रित करने वाली शक्ति का नाम ईश्वर है। ईश्वर को हम तरह तरह के नामों से पुकारते हैं सत्य, ज्ञान, भगवान, प्रेम, आनंद इत्यादि।वेद में इसका बहुत सुन्दर निरूपण है।यस्माद्...

