भज गोविंदं भज गोविंदं
गोविंदं भज मूढ़मते।

भज गोविंदं भज गोविंदं
गोविंदं भज मूढ़मते।

Shwet Discourses

(साधक प्रश्नोत्तरी)

ब्रह्म– वह अनंत शक्ति है, जिसके कारण सब कुछ चलायमान और दृश्य है, जो दृश्य नहीं है उसमें भी उसी की शक्ति व्याप्त है । यह ऐसे समझिए जैसे – science में Energy कही जाती है और वह सबमें विद्यमान है किसी न किसी रूप में । बिना उस ऊर्जा के उस पदार्थ की स्थिति या उसका होना असंभव है । चाहे इसे kinetic energy कहें, चाहे potentia। , चाहे atomic, आदि आदि । एक ही शक्ति विभिन्न रूपों से अपना कार्य करती है ।
Energy can neither be created nor be destroyed but can transform into one form to another.
तो हम सब उसी ऊर्जा से संबंधित हैं । यह जीव भी ब्रह्म का एक रूप है । यहाँ जीव से तात्पर्य आत्मा से है जिसने सभी को चेतनता प्रदान की हुई है लेकिन हम विभिन्नांश हैं ।

देखिए, ऐसे समझिए एक महान शक्ति है जिसके बराबर कोई नहीं । वह है परब्रह्म, इसके तीन रूप हैं – ब्रह्म, परमात्मा, भगवान । ब्रह्म में अनंत शक्ति होती है लेकिन शक्तियों का प्राकट्य नहीं होता । अपनी शक्तियों का प्राकट्य करने के लिए वह परमात्मा बनता है । परमात्मा में 50% शक्तियों का प्राकट्य होता है । भगवान में ब्रह्म की सभी शक्तियों का प्राकट्य हो जाता है । ब्रह्म निर्गुण निर्विशेष निराकार है, परमात्मा सगुण सविशेष साकार है । भगवान में सगुण सविशेष साकार के साथ-साथ गुण, नाम, लीला, धाम, जन, रूप सब समाहित है ।
जैसे – प्रधानमंत्री की कुर्सी है, पद है, वह ब्रह्म है । उसके पास सभी शक्ति है लेकिन यह अपनी शक्ति बिना शक्तिमान के या जो उस पद पर बैठेगा, उसके बिना use नहीं कर सकता । अब जो इस पद पर बैठेगा वही उसकी शक्तियों को use कर सकता है । तो यह हुआ ब्रह्म का brief । ook out ।
जीव, ब्रह्म की ही शक्ति है जो माया द्वारा आच्छादित है । आत्मा पर माया का कोई प्रभाव नहीं होता, वह निर्लिप्त है लेकिन आत्मा को जो मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार इत्यादि दिया हुआ है, उस पर माया का अधिकार है ।

अब ईश्वर क्या है ? सम्पूर्ण संसार या सृष्टि या ब्रह्माण्ड के एक-एक जीव और जड़ से लेकर चेतन तक को नियंत्रित करने वाली शक्ति का नाम ईश्वर है । ईश्वर को हम तरह-तरह के नामों से पुकारते हैं – सत्य, ज्ञान, भगवान्, प्रेम, आनंद इत्यादि । वेद में इसका बहुत सुन्दर निरूपण है –
यस्मात् खल्विमानि भूतानि जायंते। येन जातानि जीवंति। यस्मिन् लयमेष्यंति, तद् ब्रह्म।

अर्थात् जिसमें से सम्पूर्ण जगत की उत्पति होती है, उत्पति के बाद जिससे जीवन मिलता है तथा अंत में जिसमें जीवन मिलता है, वही ब्रम्ह है । इसमें- 1 उत्पत्ति, 2 स्थिति तथा, 3 लय; यह तीनों क्रिया बतलाई गईं हैं जिसमें यह तीनों क्रिया हैं, वही ईश्वर है । सरल अर्थों में समझो तो, विश्व का प्रत्येक जीव एकमात्र आनंद / मजा / सुख चाहता है और उस आनंद को प्राप्त करने के लिए वह प्रत्येक क्षण कर्म कर रहा है । उसके प्रत्येक कर्म में केवल आनंद पाना लक्ष्य है । कोई भी जीव चाहकर भी दुःख नहीं चाहता या चाह सकता ।

आनन्दो ब्रह्मेति व्यजानात्।
आनन्दाध्येव खल्विमानि भूतानि जायन्ते।
आनन्देन जातानि जीवन्ति।
आनन्दं प्रयन्त्यभिसंविशन्तीति।
सैषा भार्गवी वारुणी विद्या परमे व्योम्नि प्रतिष्ठिता।

हम कोई भी कर्म करते हैं एकमात्र आनंद पाने के लिए । रो रहे हैं, हंस रहे हैं, बोल रहे हैं, सुन रहे हैं, सो रहे हैं, आत्महत्या कर रहे हैं, कुछ भी कर रहे हैं बस एकमात्र इसीलिए कि हमें आनंद मिल जाए, हम दुःख नहीं चाहते ।
हाँ, बस हम गलत सोच लेते हैं कि अमुक कार्य करने से हमें आनंद मिल जाएगा । उस लड़की से शादी हो जाएगी तो हमें आनंद मिल जायेगा । यह डिग्री, यह नौकरी, यह कार, यह चीज करने से हमें आनंद मिल जायेगा पर ऐसा नहीं होता क्योंकि वहाँ आनंद नहीं है । आनंद आत्मा का एकमात्र लक्ष्य है । चूँकि आत्मा परमात्मा का अंश है और परमात्मा या ईश्वर ही आनंद है । इसीलिए अंशी अपने अंश से स्वभावतः प्रेम करेगा ।
अनंत ब्रह्मा, विष्णु, महेश इत्यादि सब इसी आनंद के दास हैं । वो भी निरंतर इसी आनंद को पाने के लिए कर्म कर रहे हैं । यही आनंद ईश्वर है ।