भज गोविंदं भज गोविंदं
गोविंदं भज मूढ़मते।

भज गोविंदं भज गोविंदं
गोविंदं भज मूढ़मते।

Shwet Discourses

(साधक प्रश्नोत्तरी)

पहले विष्णु तत्त्व, राम तत्त्व, कृष्ण तत्त्व और राधा तत्त्व क्या है, इसको समझना पड़ेगा ।
विष्णु तत्त्व :- विष्णु तत्त्व चित्त शक्ति है उसमें आनंद है लेकिन उसकी मधुरता कम है । राम तत्त्व- राम तत्त्व भी परम तत्त्व है, वह योगियों, दास्य, सख्य, शांत भावों के लिए परमानंद है पर जो इससे ऊपर वाला रस है, वह नहीं है ।
कृष्ण तत्त्व :- कृष्ण तत्त्व में जो रस है वह शांत से लेकर माधुर्य भाव तक है । उसमें भी द्वारका वाला रस अलग, उससे ऊपर मथुरा वाला रस, उससे ऊपर गोकुल का रस, उससे ऊपर ब्रज का रस, उससे ऊपर वृन्दावन का रस ।
उस वृन्दावन के रस के भी कई स्तर हैं – शांत से लेकर माधुर्य तक । केलि रस, कुंज रस, निकुंज रस । उसमें भी रति, भाव, आदि 8 रस । फिर उसमें भी निर्वेद, निभसव, गोपन इत्यादि मिलाकर 33 रस । फिर उसमें भी मधु, घृत, लाक्षा के रस, फिर उसमें भी मजिष्ठा, कुसुमिका शिरिशा आदि का रस ।
फिर आता है राधा तत्त्व जो कि प्रेम के ह्लादिनी मधुरतम भाव की सर्वोच्च कक्षा है । इसके भी 18, फिर उसमें 64, फिर उसमें 12 12, फिर उसमें 33, फिर इसमें 56 रस मिलाकर कुल 684 रस हैं । फिर निभृत निकुंज का वह परम रस जिसको स्वयं श्रीकृष्ण तक पाने के लिए लालायित रहते हैं तो उस रस की दिव्यातिदिव्य मधुरतम सोपान का रस श्रीराधा हैं । इसलिए ऐसा कहा गया है ।